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श्रीराधाकृष्ण की अधूरी भक्ति और पुनर्जन्म की कथा भाग 5

माँ राधा, पिताश्री कृष्ण – उस आत्मा की पुनर्जन्म गाथा – भाग 5 “प्रेम में ही मोक्ष है, सेवा में ही जीवन है” उस दिव्य आत्मा की अंतिम विदाई एक दिन, जब रात्रि को कीर्तन समाप्त हुआ और सभी भक्त विश्राम में चले गए, वो भक्त—जिसने राधा-कृष्ण को अपने माता-पिता के रूप में स्वीकारा था— […]

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श्रीराधाकृष्ण की अधूरी भक्ति और पुनर्जन्म की कथा भाग 4

माँ राधा, पिताश्री कृष्ण – उस आत्मा की पुनर्जन्म गाथा भाग 4 जहाँ प्रेम सेवा बनता है और सेवा मिलन की ओर ले जाती है   पिछले भाग से आगे… उस दिव्य बालक की आत्मा, जो अब वयस्क बन चुकी थी, वृन्दावन में सब कुछ त्यागकर आ बसी थी पर अब उसका त्याग केवल वैराग्य

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श्रीराधाकृष्ण की अधूरी भक्ति और पुनर्जन्म की कथा भाग 3

माँ राधा, पिताश्री कृष्ण – उस आत्मा की पुनर्जन्म गाथा – भाग 3 सेवा, समर्पण और आत्म-लय का अंतिम चरण   पिछले भागों से… उस दिव्य बालक की आत्मा, जिसने राधाकृष्ण को अपने माता-पिता माना था, पिछले जन्म की अधूरी पुकार को लेकर इस जन्म में पुनः जन्मी थी। अपने सांसारिक माता-पिता की सेवा को

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श्रीराधाकृष्ण की अधूरी भक्ति और पुनर्जन्म की कथा भाग 2

माँ राधा, पिताश्री कृष्ण – उस बालक की पुनर्जन्म गाथा – भाग 2 एक अनाथ बच्चे का दिव्य संबंध, जो साक्षात् राधाकृष्ण को माँ-पिता के रूप में जानता है   पिछले भाग से आगे… जिस बालक ने पिछले जन्म में राधाकृष्ण को माता-पिता के रूप में पाने की अधूरी इच्छा लेकर देह त्याग दिया था,

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श्रीराधाकृष्ण की अधूरी भक्ति और पुनर्जन्म की कथा भाग 1

माँ राधा, पिताश्री कृष्ण – उस बालक की पुनर्जन्म गाथा – भाग 1 एक आत्मा की पुकार और प्रभु की करुणा पर आधारित कहानी प्रारंभ – अधूरी पुकारबहुत समय पहले की बात है। एक युवक था उसका मन संसार में था, लेकिन आत्मा श्रीकृष्ण और राधारानी की भक्ति में डूबा हुआ था। वो रोज़ उनकी

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भाव: “वृन्दावन का मधुर मिलन”

भाव: “वृन्दावन का मधुर मिलन” वृन्दावन की छाया में, श्याम संग खेले बाल, कमल-पुष्प भी मुस्काएं, देखे यह रसमय हाल।कंचन जैसी धूप बिखरी, वृक्षों में मंजर लगे, प्रेम-रस की थाली लेकर, सखा संग मोहन जगे।ना है कोई भेद-भाव, ना रंक-धनी की बात, सखा बना है ईश्वर मेरा, बांट रहा है प्रीत-संतात। भोजन नहीं, यह प्रेम का अर्पण है मधुर भाव से, साक्षात ब्रह्म खेल रहे

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“मैं आई तेरे आँगन में…” (कविता)

मैं आई तेरे आँगन में, कविता मैं आई तेरे आँगन में, आम बेचन श्याम,न भाव था व्यापार का, बस दरस की थी प्यास।घूँघट में छुपा चेहरा, मन में थी लाज,पर नजरें ढूंढती थीं बस, तेरी मधुर आवाज।तू खेल रहा था बालकों संग, मुरली ताने हाथ,मैं थर-थर काँप रही थी, मन कहे – आज तो बात।तू

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कालिय का समर्पण

Vrindavan ki Yamuna  mein Krishna leela यमुना की लहरों में जहर सा बसा,कालिय का अहंकार जल में था तना।नीलमणि श्याम, जब उतरे वहाँ,नृत्य की थापों से कम्पित धरा।नवनीत चोर, कन्हैया विराजे,पैरों में बंधा, नाग भागे न आज।पाँच सौ फनों पे चरणों की छाया,बंसी की धुन में समर्पण की माया।“हे प्रभु!”  कहा नाग ने कांपते स्वर,“मैं

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