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भगवद गीता – अध्याय 1, श्लोक 31, अर्जुन का मोह – धर्म का भ्रम और कर्तव्य से पलायन

भगवद गीता – अध्याय 1, श्लोक 31, अर्जुन का मोह – धर्म का भ्रम और कर्तव्य से पलायन संस्कृत श्लोक: न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे | न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च ॥ 31॥ शब्दार्थ (Shabdarth): न च श्रेयः अनुपश्यामि – मुझे कोई कल्याण नहीं दिखता हत्वा – मारकर स्वजनम् – अपने […]

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भगवद गीता – अध्याय 1, श्लोक 30, अर्जुन का भ्रम और निर्णयशक्ति का ह्रास

भगवद गीता – अध्याय 1, श्लोक 30, अर्जुन का भ्रम और निर्णयशक्ति का ह्रास   श्लोक: न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः | निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव ॥ 30॥   शब्दार्थ (Shabdarth): न च शक्नोमि – मैं नहीं कर पा रहा अवस्थातुं – स्थिर रहना भ्रमति – भ्रमित हो रहा है इव च

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भगवद गीता – अध्याय 1, श्लोक 29, अर्जुन का भय – युद्ध से पहले मन का टूटना

भगवद गीता – अध्याय 1, श्लोक 29, अर्जुन का भय – युद्ध से पहले मन का टूटना   श्लोक: वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते |  गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते ॥ 29॥   शब्दार्थ (Shabdarth): वेपथु: च – कंपकंपी भी शरीरे मे – मेरे शरीर में रोम हर्ष: च जायते – रोमांच उत्पन्न हो रहा है

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भगवद गीता – अध्याय 1, श्लोक 28, अर्जुन का आत्मविचलन – धर्म संकट का आरंभ

भगवद गीता – अध्याय 1, श्लोक 28, अर्जुन का आत्मविचलन – धर्म संकट का आरंभ श्लोक: दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम् |  सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति ॥ 28॥ शब्दार्थ (Shabdarth): दृष्ट्वा – देखकर इमं स्वजनम् – इन अपने कुटुंबियों को कृष्ण – हे कृष्ण युयुत्सुम् – युद्ध के लिए उत्सुक समुपस्थितम् – सामने

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भगवद गीता – अध्याय 1, श्लोक 27, स्वजनों को देखकर अर्जुन का हृदय व्याकुल

भगवद गीता – अध्याय 1, श्लोक 27, स्वजनों को देखकर अर्जुन का हृदय व्याकुल श्लोक: तान् समीक्श्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान् |  कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत् ॥ 27॥ शब्दार्थ (Shabdarth): तान् समीक्ष्य – उन्हें देखकर स कौन्तेयः – वह कुन्तीपुत्र (अर्जुन) सर्वान् बन्धून् – सभी संबंधियों को अवस्थितान् – युद्ध के लिए तैयार खड़ा पाया कृपया परया

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भगवद गीता – अध्याय 1, श्लोक 26, अर्जुन की दृष्टि – अपनों को शत्रु रूप में देखना

भगवद गीता – अध्याय 1, श्लोक 26, अर्जुन की दृष्टि – अपनों को शत्रु रूप में देखना   श्लोक: तत्रापश्यत्स्थितान् पार्थः पितॄन् अथ पितामहान् |  आचार्यान् मातुलान् भ्रातॄन् पुत्रान् पौत्रान् सखींस्तथा ||  श्वशुरान् सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि॥ 26॥   शब्दार्थ (Shabdarth): तत्र अपश्यत् – वहाँ देखा स्थितान् पार्थः – खड़े हुए अर्जुन ने पितॄन् – अपने पिताओं

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भगवद गीता – अध्याय 1, श्लोक 25, धर्म युद्ध के पहले दर्शन – अर्जुन की दृष्टि से

भगवद गीता – अध्याय 1, श्लोक 25, धर्म युद्ध के पहले दर्शन – अर्जुन की दृष्टि से संस्कृत श्लोक: भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम् | उवाच पार्थः पश्यैतान् समवेतान् कुरूनिति ॥ 25॥   शब्दार्थ (Shabdarth): भीष्म-द्रोण-प्रमुखतः – भीष्म और द्रोणाचार्य के सामने सर्वेषां च महीक्षिताम् – और अन्य सभी राजाओं के सामने उवाच – कहा पार्थः

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भगवद गीता – अध्याय 1, श्लोक 24 अर्जुन की आज्ञा का पालन – भक्त के संकेत पर भगवान

भगवद गीता – अध्याय 1, श्लोक 24 अर्जुन की आज्ञा का पालन – भक्त के संकेत पर भगवान श्लोक (Sanskrit): सञ्जय उवाच |  एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत | सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम्॥ 24॥   शब्दार्थ (Shabdarth): सञ्जय उवाच – संजय ने कहा एवम् उक्तः – इस प्रकार कहे जाने पर हृषीकेशः – श्रीकृष्ण (इन्द्रियों के स्वामी)

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भगवद गीता – अध्याय 1, श्लोक 23

भगवद गीता – अध्याय 1, श्लोक 23, परखना है कौन खड़ा है अधर्म के साथ श्लोक : योत्स्यमानानविक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः।  धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेः युध्दे प्रियचिकीर्षवः॥ 23॥   शब्दार्थ (Shabdarth): योत्स्यमानान अविक्षे अहम्: – मैं देखना चाहता हूँ इन युद्ध करने वालों को य एते अत्र समागताः – जो यहाँ एकत्र हुए हैं धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेः –

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