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भगवद गीता – श्लोक 1.16: धर्म के योद्धाओं का शंखनाद

भगवद गीता – अध्याय 1, श्लोक 16 श्लोक 1.16॥  अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः।  नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ॥   अनुवाद:राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय नामक शंख बजाया, और उनके भाई नकुल तथा सहदेव ने क्रमशः सुघोष तथा मणिपुष्पक नामक शंखों का नाद किया। शब्दार्थ (Shabdarth):अनन्तविजयम् – अनन्तविजय नामक शंखराजा कुन्तीपुत्रः युधिष्ठिरः – कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिरनकुलः सहदेवः च –

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भगवद गीता: अध्याय 1, श्लोक 22 – शत्रु कौन है? अर्जुन की युद्धपूर्व दृष्टि

भगवद गीता: अध्याय 1, श्लोक 22 – शत्रु कौन है? अर्जुन की युद्धपूर्व दृष्टि   श्लोक : यावत्स्येतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान् | कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे ॥ 1.22 शब्दार्थ :यावत् – जब तक एतान् निरीक्षे अहम् – मैं इनको देख न लूं योद्धुकामान् अवस्थितान् – जो युद्ध की इच्छा से खड़े हैं कैः मया सह योद्धव्यम् –

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अर्जुन का रथ रोकने का अनुरोध – भगवद गीता श्लोक 1.21 का रहस्य

अर्जुन का रथ रोकने का अनुरोध – भगवद गीता श्लोक 1.21 का रहस्य श्लोक (Sanskrit) अर्जुन उवाच | सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ॥1.21॥   शब्दार्थ अर्जुन उवाच – अर्जुन ने कहा  सेनयोः उभयोः मध्ये – दोनों सेनाओं के मध्य  रथं स्थापय – मेरा रथ स्थापित कीजिए  मे अच्युत – हे अच्युत (कभी न गिरने वाले,

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भगवद गीता: अध्याय 1, श्लोक 20 – “धर्म की घोषणा: अर्जुन का संकल्प” ​

भगवद गीता: अध्याय 1, श्लोक 20 – “धर्म की घोषणा: अर्जुन का संकल्प” श्लोक : अथ व्यवस्थितान् दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान् कपिध्वजः | प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः || हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते: |||   शब्दार्थ (Word Meaning): अथ – इसके बाद व्यवस्थितान् – व्यूह में सुसज्जित दृष्ट्वा – देखकर धार्तराष्ट्रान् – धृतराष्ट्र के पुत्रों को कपिध्वजः –

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अध्याय 1, श्लोक 19, त्रैलोक्य को कंपा देने वाला शंखनाद

अध्याय 1, श्लोक 19, त्रैलोक्य को कंपा देने वाला शंखनाद श्लोक:स सञ्जय उवाच स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्। नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलो व्यनुनादयन्॥ शब्दार्थ:स घोषः — वह ध्वनि (शंखनाद)धार्तराष्ट्राणाम् :— धृतराष्ट्र के पुत्रों काहृदयानि :— हृदयव्यदारयत् :— चीर डाली, कंपा दियानभः च पृथिवीम् च एव — आकाश और पृथ्वी को भीतुमुलः — प्रचंडव्यानुनादयन् — गूंज उठे

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अध्याय 1, श्लोक 18, वीरों की गूंजती घोषणा

अध्याय 1, श्लोक 18, वीरों की गूंजती घोषणा Bhagavad Gita श्लोक 18 द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशःपृथिवीपते। सौभद्रश्च महारथाः॥  अनुवाद:हे पृथ्वी के स्वामी (राजन्)! राजा द्रुपद, द्रौपदी के पुत्र और अभिमन्यु (सौभद्र) ने भी, अपने-अपने बलवान भुजाओं से अलग-अलग शंख बजाए। शब्दार्थ:द्रुपदः – राजा द्रुपदद्रौपदेयाः – द्रौपदी के पुत्रसर्वशः – सभीपृथिवीपते: – हे पृथ्वी के स्वामी (धृतराष्ट्र)सौभद्रः –

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अध्याय 1, श्लोक 17 अर्जुन का शंखनाद

अध्याय 1, श्लोक 17, शंखध्वनि से धर्म की उद्घोषणा श्लोक 1.17 अन्येषां च सर्वेषां सघोषो धनञ्जयः।स शङ्खं दध्मौ महाशङ्खं भीष्मप्रमुखतः पितामहः॥   अनुवाद:अन्य बहुत से वीर योद्धा, जो मेरे लिए अपने जीवन को त्याग देने को तैयार हैं, विविध प्रकार के शस्त्रों से सुसज्जित हैं और युद्ध में निपुण हैं।  शब्दार्थ:अन्येषाम्: — अन्य सभी के लिएच सर्वेषाम्:

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Adhyay 1, Shlok 15 (भगवद गीता अध्याय 1 श्लोक 15 ) “धर्म की घोषणा अब तेज़ होती है – पाँचों पांडवों का शंखनाद”

श्रीकृष्ण, अर्जुन और भीम का शंखनाद – गीता श्लोक 1.15 का गूढ़ अर्थ   श्लोक 1.15॥पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनंजयः।पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः॥  शब्दार्थहृषीकेशः – भगवान श्रीकृष्णपाञ्चजन्यं – श्रीकृष्ण का शंखधनंजयः – अर्जुन (जो सम्पत्ति जीतने वाला है)देवदत्तं – अर्जुन का शंखभीमकर्मा वृकोदरः – भीम (बलशाली कार्यों वाला, वृहद उदर वाला)पौण्ड्रं महाशङ्खं – भीम का

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Adhyay 1, Shlok 14 – कृष्ण-अर्जुन का शंखनाद: धर्म की ओर पहला कदम

Adhyay 1, Shlok 14 – कृष्ण-अर्जुन का शंखनाद: धर्म की ओर पहला कदम   श्लोक : 1.14 ततः श्वेतैः हयैः युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ | माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुः ॥  शब्दार्थततः — इसके बादश्वेतैः हयैः युक्ते — श्वेत अश्वों से जुते हुएमहति स्यन्दने स्थितौ — महान रथ में स्थितमाधवः — श्रीकृष्ण (माधव)पाण्डवः च एव — और

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