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Adhyay 1, Shlok 9 (भगवद गीता अध्याय 1 श्लोक 9 )

 

श्लोक: 1.9 
अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः। 
नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः॥ 

शब्दार्थ:
अन्ये च — और भी
बहवः शूराः — बहुत से वीर
मदर्थे — मेरे लिए
त्यक्तजीविताः — जीवन त्यागने को तत्पर
नानाशस्त्रप्रहरणाः — अनेक प्रकार के शस्त्रों से युक्त
सर्वे युद्धविशारदाः — सभी युद्ध में कुशल

भावार्थ:
दुर्योधन कहता है — “मेरे लिए अपने प्राण देने को तैयार और भी बहुत से वीर योद्धा हैं, जो विभिन्न प्रकार के शस्त्रों से सुसज्जित हैं और युद्ध-कला में पारंगत हैं।”

गूढ़ अर्थ (Deeper Meaning):
यहाँ दुर्योधन एक बार फिर अपने सैन्यबल और बाहरी शक्ति का उल्लेख करता है। उसके मन में गंभीर भय और असुरक्षा है, जिसे वह बार-बार शौर्य की गिनती करके ढकने की कोशिश कर रहा है।
यह “श्लोक” हमें दिखाता है कि जब कोई धर्म के मार्ग से भटकता है, तो वह भीतर की शांति खोकर बाहरी शक्ति को ढाल बनाता है।
दुर्योधन को इस बात का अहसास नहीं कि उसकी सेना में धर्मभाव नहीं, केवल शस्त्र और अभिमान है।

Spiritual Insight: (त्यक्तजीविता):
प्राण त्यागने की बात धर्म के लिए हो तो पुण्य है, पर अधर्म के लिए हो तो विनाश का कारण बनती है। ये योद्धा बलवान तो हैं, पर क्या वे धर्म के लिए लड़ रहे हैं या दुर्योधन के अहंकार के लिए?

यह श्लोक दर्शाता है कि बाहरी कौशल, धार्मिक अधिष्ठान के बिना, मूल्यहीन हो जाता है।

जीवन में प्रयोग (Life Application):
जीवन में कई बार हम भी बाहरी संसाधनों, लोगों, पैसे, और ज्ञान पर बहुत भरोसा कर लेते हैं, और आत्मबल और धार्मिक विवेक को भूल जाते हैं।
यह श्लोक हमें सिखाता है कि: “अधर्म के पक्ष में खड़े होकर वीरता भी अंततः पराजित होती है।”

सीख (Takeaway):
“असली शक्ति वह है, जो सत्य और धर्म के पक्ष में हो।” 
“भीतर की शांति और ईश्वर पर भरोसा ही सच्चा कवच है।”
“भीड़ हो सकती है, पर अगर उसमें सत्य न हो, तो वह हार ही लाती है।”
“दुर्योधन इस श्लोक में द्रोणाचार्य को आश्वस्त कर रहा है कि उसकी सेना में ऐसे वीर योद्धा हैं,जो किसी भी स्थिति में उसके लिए प्राण त्यागने को तैयार हैं और युद्ध की कला में प्रवीण हैं।लेकिन वह यह भूल रहा है कि धर्म की विजय सुनिश्चित है और भगवान श्रीकृष्ण स्वयं पांडवों के पक्ष में हैं।”
“परंतु, धर्म की रक्षा के लिए स्वयं भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथी बने हैं।धर्म की रक्षा के लिए विजय अवश्यंभावी है।”

अगले श्लोक में जानिए
दुर्योधन अब क्या रणनीति बना रहा है? और कैसे वह द्रोणाचार्य को अप्रत्यक्ष रूप से उकसाने की कोशिश करता है।

पढ़ते रहिए – Bhaktipath.blog जय श्रीकृष्ण! 

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