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Adhyay 1, Shlok 7 (भगवद गीता अध्याय 1 श्लोक 7 )

 

श्लोक 1.7 
अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम। 
नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते॥

शब्दार्थ (Word Meaning):
अस्माकं तु – हमारी ओर से तो
विशिष्टाः ये – जो विशेष (प्रमुख) हैं
तान् निबोध – उन्हें जानो
द्विजोत्तम – हे ब्राह्मणश्रेष्ठ (संजय)
नायकाः मम सैन्यस्य – मेरी सेना के नायक
संज्ञार्थम् – पहचान कराने के लिए
तान् ब्रवीमि ते – उन्हें मैं तुम्हें बताता हूँ

भावार्थ (Simple Meaning):
दुर्योधन कहता है: “हे ब्राह्मणश्रेष्ठ (संजय), अब हमारी सेना के उन प्रमुख नायकों को जानो, जिनका परिचय मैं तुम्हें दे रहा हूँ।”

गूढ़ अर्थ (Deeper Insight):
यहाँ से युद्ध के पहले का मनोवैज्ञानिक युद्ध शुरू होता है। दुर्योधन, पांडवों की सेना के बल को देखकर चिंतित हो चुका है। अब वह अपने मन को शांत करने के लिए अपनी ही सेना के योद्धाओं का नाम लेने जा रहा है — ताकि अपने आत्मविश्वास को फिर से जुटा सके।
यह केवल नामों की गिनती नहीं, बल्कि उसके भीतर के डर और मन की बेचैनी का संकेत है। वह खुद को समझा रहा है — “मेरे पास भी बड़े योद्धा हैं। मैं कमज़ोर नहीं हूँ।”

Spiritual Insight (आध्यात्मिक दृष्टिकोण):
मनुष्य भी जीवन में इसी तरह द्वंद्वों में उलझता है। जब हम किसी चुनौती के सामने खड़े होते हैं, तो हमारे भीतर का “दुर्योधन” हमें बार-बार अपने बाहरी संसाधनों की याद दिलाता है — परन्तु सच्चा बल भीतर से आता है, आत्मा से, परमात्मा के जुड़ाव से।
यह श्लोक आत्म-संवाद का प्रतीक है। हम जब भी डरते हैं, हम खुद से बातें करते हैं — और यह श्लोक हमें याद दिलाता है कि हर बाहरी योजना, भीतरी शक्ति पर ही टिकी होती है।

जीवन में सीख (Life Lesson):
आत्मविश्वास भीतर से आता है, बाहर से नहीं।
जब मन डगमगाता है, तो हम अक्सर “अपने पक्ष” को गिनाते हैं — लेकिन असली साहस तब आता है, जब हम “धर्म के पक्ष” में खड़े होते हैं।
केवल नाम गिनाने से युद्ध नहीं जीता जाता — संकल्प और समर्पण से ही विजय होती है।

निष्कर्ष (Conclusion):
यह श्लोक दुर्योधन के मन के द्वंद्व और उसके भीतर की असुरक्षा को दर्शाता है। वह युद्ध में खड़ा है, पर सबसे पहले लड़ाई अपने डर से लड़ रहा है।
हमें भी जीवन के कुरुक्षेत्र में सबसे पहले अपने डर, भ्रम, और अहंकार से ही युद्ध करना पड़ता है।
यह श्लोक हमें सिखाता है कि अहंकार और शक्ति का दुरुपयोग न करें। सच्ची विजय आत्मसमर्पण और धर्म के मार्ग पर चलने से मिलती है। 

अगले लेख में जानिए:
श्लोक 8 और 9, जिनमें दुर्योधन अपनी सेना के महान योद्धाओं का नाम लेना शुरू करता है — भीष्म, कर्ण, कृपाचार्य जैसे महामानव।पढ़ते रहिए — Bhaktipath.blog जय श्रीकृष्ण!

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