Adhyay 1, Shlok 13 – जब युद्धभूमि गूंज उठी: हर योद्धा ने शंख बजाया
श्लोक : 1.13
ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः |
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत्॥
शब्दार्थ
ततः – इसके बाद
शङ्खाः च – शंख
भेर्यः च – भेरी (ढोल जैसे वाद्य)
पणवानक गोमुखाः – अन्य युद्ध वाद्य जैसे मृदंग और तुरही
सहसा एव – एकसाथ ही
अभ्यहन्यन्त – बजाए गए
सः शब्दः – वह ध्वनि
तुमुलः अभवत् – अत्यंत गगनभेदी हो गई
भावार्थ
भीष्म पितामह के शंखनाद के बाद, कौरव सेना के अन्य योद्धाओं ने भी शंख, नगाड़े, मृदंग और तुरहियाँ एक साथ बजाईं, जिससे युद्ध भूमि में गगनचुंबी, तूफानी आवाज़ गूंज उठी।
गूढ़ अर्थ (Deeper Insight)
इस श्लोक में केवल शंख और युद्ध वाद्यों का वर्णन नहीं है — यह मानव चेतना में संकल्प की घोषणा है।
यह ध्वनि बताती है कि अब वापसी का कोई मार्ग नहीं बचा।
यह आवाज़ है — द्वंद्व का, मानव भावनाओं की जटिलता का, और उस मौन युद्ध का जो आत्मा में चल रहा है।
प्रश्न:
क्या हम अपने जीवन में भी कभी ऐसा शंखनाद करते हैं, जब हम कोई निर्णय लेकर उसे स्थायी कर देते हैं?
Spiritual Insight (आध्यात्मिक दृष्टिकोण)
शंख, ढोल और तुरही केवल ध्वनि उत्पन्न नहीं करते — वे ऊर्जा का संचार करते हैं। जब हम किसी संकल्प को पूरी श्रद्धा से अपनाते हैं, तो हमारी चेतना भी ऐसा ही ध्वनि-युद्ध करती है — भीतर से।
यह श्लोक हमें सिखाता है: जब निर्णय हो जाए, तो उसे संपूर्ण समर्पण से स्वीकारो। आधे मन से लिया गया निर्णय जीवन में भ्रम ही लाता है।
जीवन में प्रयोग
जब आप कोई नया अध्याय शुरू करें, जैसे भक्ति का मार्ग चुनना, सेवा प्रारंभ करना, बुरी आदतें छोड़ना — तब अपने मन में शंखनाद करें।
कहें: “अब कोई लौटना नहीं। अब बस समर्पण।“
सीख (Takeaway)
सभी युद्धों से पहले एक शंखध्वनि होती है — बाहर और भीतर भी।
अपने जीवन में जब भी कोई बड़ा निर्णय लें, तो भीतर के वाद्यों को जाग्रत करें।
भीतर का संकल्प जितना स्पष्ट होगा, बाहरी सफलता उतनी ही सुनिश्चित होगी।
यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि जीवन में जब संघर्ष का समय हो, तो पूरे आत्मविश्वास और समर्पण के साथ उस संघर्ष का सामना करना चाहिए। जैसे युद्धभूमि में वाद्य यंत्रों की ध्वनि योद्धाओं में जोश और साहस भरती थी, वैसे ही जीवन में भी आत्मविश्वास और साहस से हम कठिनाइयों को पार कर सकते हैं।
अगले श्लोक में जानिए:
भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन द्वारा बजाए गए दिव्य शंखों की ध्वनि और उसका गूढ़ रहस्य।
पढ़ते रहिए – Bhaktipath.blog जय श्रीकृष्ण!