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भगवद गीता – अध्याय 1, श्लोक 25, धर्म युद्ध के पहले दर्शन – अर्जुन की दृष्टि से


संस्कृत श्लोक:

भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम् |

उवाच पार्थः पश्यैतान् समवेतान् कुरूनिति ॥ 25॥

 

शब्दार्थ (Shabdarth):

भीष्म-द्रोण-प्रमुखतः – भीष्म और द्रोणाचार्य के सामने

सर्वेषां च महीक्षिताम् – और अन्य सभी राजाओं के सामने

उवाच – कहा

पार्थः – अर्जुन ने

पश्य एतान् – देखो इनको

समवेतान् कुरून – एकत्रित हुए कौरवों को

इति – इस प्रकार

 

हिंदी अनुवाद (Anuvaad):

भीष्म, द्रोण और अन्य राजाओं के सामने श्रीकृष्ण ने रथ को खड़ा कर दिया।

तब अर्जुन ने कहा – “हे कृष्ण! इन एकत्रित हुए कौरवों को देखो।”

 

भावार्थ (Simple Meaning):

भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन की इच्छा के अनुसार रथ को युद्धभूमि के मध्य, भीष्म और द्रोण के सामने खड़ा किया।

वहाँ अर्जुन ने इन सब को देखकर गहन भावनात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की।

 

गूढ़ अर्थ (Spiritual Insight):

यह कोई सामान्य “देखना” नहीं था। अर्जुन धर्म और कर्तव्य के बीच फंसे हुए हैं।

भीष्म और द्रोण, जिनसे उन्होंने शिक्षा पाई, वही अब युद्धभूमि में शत्रु पक्ष में खड़े हैं।

यह द्वंद्व है — प्रेम और कर्तव्य का सम्मान और धर्म का शिष्य और योद्धा का

यह श्लोक भीतर के युद्ध की शुरुआत है — जहाँ आत्मा का मोह और विवेक टकराने लगते हैं।

 

Spiritual Learning (आध्यात्मिक सीख):

जीवन में कई बार हमें ऐसे निर्णय लेने पड़ते हैं, जहाँ जिनसे हम प्रेम करते हैं,

उनके खिलाफ भी सत्य और धर्म के लिए खड़ा होना पड़ता है।

यह श्लोक सिखाता है कि धर्म की राह आसान नहीं होती, लेकिन वही आत्मा को शुद्ध करता है।

 

जीवन में प्रयोग (Practical Application):

जब हमें सही निर्णय लेना हो, और हमारे अपने ही उस निर्णय के सामने खड़े हों,

तब यह श्लोक हमें याद दिलाता है: “धर्म सबसे ऊपर है – संबंध, मोह, सम्मान से भी।”

 

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