माँ राधा, पिताश्री कृष्ण – उस आत्मा की पुनर्जन्म गाथा भाग 4
जहाँ प्रेम सेवा बनता है और सेवा मिलन की ओर ले जाती है
पिछले भाग से आगे…
उस दिव्य बालक की आत्मा, जो अब वयस्क बन चुकी थी,
वृन्दावन में सब कुछ त्यागकर आ बसी थी पर अब उसका त्याग केवल वैराग्य नहीं,
बल्कि सेवा का आधार बन गया था।
Vrindavan में प्रेम-निवास की स्थापना
उसने राधा-कृष्ण के चरणों में श्रद्धा से एक बड़ा,
पर बहुत ही सादा आश्रमनुमा निवास बनाया,
जिसका नाम रखा — “श्रीराधाकृष्ण प्रेमधाम”
वो निवास अब उसका घर नहीं रहा,
बल्कि भक्तों और साधु-संतों के लिए एक खुला धाम बन गया।
कृपा की बूँदें – कीर्तन और सेवा का केंद्र
उसने आस-पास के संतों और साधकों को आमंत्रित किया:
“यह घर मेरा नहीं, मेरे माँ-पिता का है। जो भी प्रभु का गान करना चाहे, सेवा करना चाहे, उसका यहाँ स्वागत है।”
कुछ ही समय में, रोज़ वहाँ हरि नाम संकीर्तन, भागवत पाठ, और राधे राधे का गुंजन होने लगा।
भक्तों ने कभी वहाँ भूख नहीं पाई। जो थका हुआ आता, प्रेम की छाया पाकर आनंदमयी हो जाता।
वो अब खुद को सेवक मानता था, स्वामी नहीं।
हर रात्रि वह द्वार पर बैठता, भक्तों के चरण धोता, और कहता:
“आप मेरे नहीं, माँ राधा के अतिथि हैं — आपके चरणों में सेवा करके मैं अपने पिताश्री की कृपा प्राप्त करता हूँ।”
अब उसकी केवल एक कामना शेष थी…
अब उसके हृदय में केवल एक बात बस गई थी:
“हे मेरे राधारमण… अब और क्या करूं जिससे आप स्वयं आकर मुझे गोद में उठा लें? अब मैं आपके बिना और नहीं रह सकता।“
वो धीरे-धीरे भोजन कम, नींद कम, बोलना कम करने लगा — पर उसका मुख दमकता रहा।
कई संतों ने अनुभव किया कि:
“ये शरीर में है, पर इसका मन कहीं और है — शायद गोलोक की ओर खिंच रहा है…”
मिलन की रात्रि – अदृश्य, पर अमिट लीला
एक पूर्णिमा की रात थी। मंदिर में दीप जल रहे थे। कीर्तन की ध्वनि थम चुकी थी। सब भक्त विश्राम कर चुके थे।
वो अपने निवास के एकांत कक्ष में बैठा था, श्रीविग्रह के सामने — माँ राधा और पिताश्री कृष्ण को निहारता हुआ।
तभी…
कमरे में एक मधुर सुगंध फैल गई। शीतल वायु चली।
और फिर… श्रीराधा वहाँ प्रकट हुईं। उनके पीछे श्यामसुंदर — मुस्कराते हुए।
“पुत्र… तूने केवल माता-पिता की ही नहीं, हमारे हज़ारों संतानों की सेवा भी की। अब चल, हम तुझे वहीं ले चलें जहाँ तेरा मन वर्षों से हमारे साथ था।“
प्रभात में जब सब जगे…
वो वहीं बैठा था, मूर्ति के सामने, कमल की तरह शांत और स्थिर। पर अब शरीर निष्क्रिय था। वो जा चुका था — पर मुस्कान वैसी ही थी, जैसे अपने माता-पिता की गोद में सिर रखकर सो गया हो।
उसके बाद…
उस निवास को आज भी “प्रेमधाम” कहा जाता है।
वहाँ आने वाले कहते हैं, “आज भी उस आत्मा की ऊर्जा यहाँ सेवा करने वालों में समाई है।”
वहाँ आज भी कोई संत अकेला नहीं सोता, राधारानी की करुणा और श्रीकृष्ण की बाँसुरी वहाँ गूंजती रहती है।
इस भाग का संदेश:
जो माता-पिता को भगवान मानते हैं, भगवान उन्हें माता-पिता से भी ऊँची ममता देते हैं।
जो सेवा को प्रेम मानते हैं, उन्हें मिलन केवल मृत्यु नहीं, वरदान बनकर मिलता है।
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माँ राधा, पिताश्री कृष्ण – उस आत्मा की पुनर्जन्म गाथा – भाग 5
माँ राधा, पिताश्री कृष्ण – उस आत्मा की पुनर्जन्म गाथा – भाग 3