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June 2025

Poetry

भाव: “वृन्दावन का मधुर मिलन”

भाव: “वृन्दावन का मधुर मिलन” वृन्दावन की छाया में, श्याम संग खेले बाल, कमल-पुष्प भी मुस्काएं, देखे यह रसमय हाल।कंचन जैसी धूप बिखरी, वृक्षों में मंजर लगे, प्रेम-रस की थाली लेकर, सखा संग मोहन जगे।ना है कोई भेद-भाव, ना रंक-धनी की बात, सखा बना है ईश्वर मेरा, बांट रहा है प्रीत-संतात। भोजन नहीं, यह प्रेम का अर्पण है मधुर भाव से, साक्षात ब्रह्म खेल रहे […]

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अध्याय 1, श्लोक 19, त्रैलोक्य को कंपा देने वाला शंखनाद

अध्याय 1, श्लोक 19, त्रैलोक्य को कंपा देने वाला शंखनाद श्लोक:स सञ्जय उवाच स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्। नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलो व्यनुनादयन्॥ शब्दार्थ:स घोषः — वह ध्वनि (शंखनाद)धार्तराष्ट्राणाम् :— धृतराष्ट्र के पुत्रों काहृदयानि :— हृदयव्यदारयत् :— चीर डाली, कंपा दियानभः च पृथिवीम् च एव — आकाश और पृथ्वी को भीतुमुलः — प्रचंडव्यानुनादयन् — गूंज उठे

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अध्याय 1, श्लोक 18, वीरों की गूंजती घोषणा

अध्याय 1, श्लोक 18, वीरों की गूंजती घोषणा Bhagavad Gita श्लोक 18 द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशःपृथिवीपते। सौभद्रश्च महारथाः॥  अनुवाद:हे पृथ्वी के स्वामी (राजन्)! राजा द्रुपद, द्रौपदी के पुत्र और अभिमन्यु (सौभद्र) ने भी, अपने-अपने बलवान भुजाओं से अलग-अलग शंख बजाए। शब्दार्थ:द्रुपदः – राजा द्रुपदद्रौपदेयाः – द्रौपदी के पुत्रसर्वशः – सभीपृथिवीपते: – हे पृथ्वी के स्वामी (धृतराष्ट्र)सौभद्रः –

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अध्याय 1, श्लोक 17 अर्जुन का शंखनाद

अध्याय 1, श्लोक 17, शंखध्वनि से धर्म की उद्घोषणा श्लोक 1.17 अन्येषां च सर्वेषां सघोषो धनञ्जयः।स शङ्खं दध्मौ महाशङ्खं भीष्मप्रमुखतः पितामहः॥   अनुवाद:अन्य बहुत से वीर योद्धा, जो मेरे लिए अपने जीवन को त्याग देने को तैयार हैं, विविध प्रकार के शस्त्रों से सुसज्जित हैं और युद्ध में निपुण हैं।  शब्दार्थ:अन्येषाम्: — अन्य सभी के लिएच सर्वेषाम्:

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“मैं आई तेरे आँगन में…” (कविता)

मैं आई तेरे आँगन में, कविता मैं आई तेरे आँगन में, आम बेचन श्याम,न भाव था व्यापार का, बस दरस की थी प्यास।घूँघट में छुपा चेहरा, मन में थी लाज,पर नजरें ढूंढती थीं बस, तेरी मधुर आवाज।तू खेल रहा था बालकों संग, मुरली ताने हाथ,मैं थर-थर काँप रही थी, मन कहे – आज तो बात।तू

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कालिय का समर्पण

Vrindavan ki Yamuna  mein Krishna leela यमुना की लहरों में जहर सा बसा,कालिय का अहंकार जल में था तना।नीलमणि श्याम, जब उतरे वहाँ,नृत्य की थापों से कम्पित धरा।नवनीत चोर, कन्हैया विराजे,पैरों में बंधा, नाग भागे न आज।पाँच सौ फनों पे चरणों की छाया,बंसी की धुन में समर्पण की माया।“हे प्रभु!”  कहा नाग ने कांपते स्वर,“मैं

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