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June 2025

Poetry

श्रीराधाकृष्ण की अधूरी भक्ति और पुनर्जन्म की कथा भाग 4

माँ राधा, पिताश्री कृष्ण – उस आत्मा की पुनर्जन्म गाथा भाग 4 जहाँ प्रेम सेवा बनता है और सेवा मिलन की ओर ले जाती है   पिछले भाग से आगे… उस दिव्य बालक की आत्मा, जो अब वयस्क बन चुकी थी, वृन्दावन में सब कुछ त्यागकर आ बसी थी पर अब उसका त्याग केवल वैराग्य […]

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श्रीराधाकृष्ण की अधूरी भक्ति और पुनर्जन्म की कथा भाग 3

माँ राधा, पिताश्री कृष्ण – उस आत्मा की पुनर्जन्म गाथा – भाग 3 सेवा, समर्पण और आत्म-लय का अंतिम चरण   पिछले भागों से… उस दिव्य बालक की आत्मा, जिसने राधाकृष्ण को अपने माता-पिता माना था, पिछले जन्म की अधूरी पुकार को लेकर इस जन्म में पुनः जन्मी थी। अपने सांसारिक माता-पिता की सेवा को

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श्रीराधाकृष्ण की अधूरी भक्ति और पुनर्जन्म की कथा भाग 2

माँ राधा, पिताश्री कृष्ण – उस बालक की पुनर्जन्म गाथा – भाग 2 एक अनाथ बच्चे का दिव्य संबंध, जो साक्षात् राधाकृष्ण को माँ-पिता के रूप में जानता है   पिछले भाग से आगे… जिस बालक ने पिछले जन्म में राधाकृष्ण को माता-पिता के रूप में पाने की अधूरी इच्छा लेकर देह त्याग दिया था,

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श्रीराधाकृष्ण की अधूरी भक्ति और पुनर्जन्म की कथा भाग 1

माँ राधा, पिताश्री कृष्ण – उस बालक की पुनर्जन्म गाथा – भाग 1 एक आत्मा की पुकार और प्रभु की करुणा पर आधारित कहानी प्रारंभ – अधूरी पुकारबहुत समय पहले की बात है। एक युवक था उसका मन संसार में था, लेकिन आत्मा श्रीकृष्ण और राधारानी की भक्ति में डूबा हुआ था। वो रोज़ उनकी

Gita Wisdom

भगवद गीता – श्लोक 1.16: धर्म के योद्धाओं का शंखनाद

भगवद गीता – अध्याय 1, श्लोक 16 श्लोक 1.16॥  अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः।  नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ॥   अनुवाद:राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय नामक शंख बजाया, और उनके भाई नकुल तथा सहदेव ने क्रमशः सुघोष तथा मणिपुष्पक नामक शंखों का नाद किया। शब्दार्थ (Shabdarth):अनन्तविजयम् – अनन्तविजय नामक शंखराजा कुन्तीपुत्रः युधिष्ठिरः – कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिरनकुलः सहदेवः च –

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भगवद गीता: अध्याय 1, श्लोक 22 – शत्रु कौन है? अर्जुन की युद्धपूर्व दृष्टि

भगवद गीता: अध्याय 1, श्लोक 22 – शत्रु कौन है? अर्जुन की युद्धपूर्व दृष्टि   श्लोक : यावत्स्येतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान् | कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे ॥ 1.22 शब्दार्थ :यावत् – जब तक एतान् निरीक्षे अहम् – मैं इनको देख न लूं योद्धुकामान् अवस्थितान् – जो युद्ध की इच्छा से खड़े हैं कैः मया सह योद्धव्यम् –

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करके इशारो बुलाय गई रे,

करके इशारो बुलाय गई रे, ( indresh upadhyay )   करके इशारो बुलाय गई रे, करके इशारो बुलाय गई रे,  बरसाने की छोरी,  राधा गोरी गोरी,  बरसाने की छोरी, राधा गोरी गोरी….. करके इशारो बुलाय गई रे, करके इशारो बुलाय गई रे,  बरसाने की छोरी,  राधा गोरी गोरी,  बरसाने की छोरी, राधा गोरी गोरी….. 🎵

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अर्जुन का रथ रोकने का अनुरोध – भगवद गीता श्लोक 1.21 का रहस्य

अर्जुन का रथ रोकने का अनुरोध – भगवद गीता श्लोक 1.21 का रहस्य श्लोक (Sanskrit) अर्जुन उवाच | सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ॥1.21॥   शब्दार्थ अर्जुन उवाच – अर्जुन ने कहा  सेनयोः उभयोः मध्ये – दोनों सेनाओं के मध्य  रथं स्थापय – मेरा रथ स्थापित कीजिए  मे अच्युत – हे अच्युत (कभी न गिरने वाले,

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भगवद गीता: अध्याय 1, श्लोक 20 – “धर्म की घोषणा: अर्जुन का संकल्प” ​

भगवद गीता: अध्याय 1, श्लोक 20 – “धर्म की घोषणा: अर्जुन का संकल्प” श्लोक : अथ व्यवस्थितान् दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान् कपिध्वजः | प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः || हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते: |||   शब्दार्थ (Word Meaning): अथ – इसके बाद व्यवस्थितान् – व्यूह में सुसज्जित दृष्ट्वा – देखकर धार्तराष्ट्रान् – धृतराष्ट्र के पुत्रों को कपिध्वजः –

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