माँ राधा, पिताश्री कृष्ण – उस आत्मा की पुनर्जन्म गाथा - भाग 5
"प्रेम में ही मोक्ष है, सेवा में ही जीवन है"
उस दिव्य आत्मा की अंतिम विदाई
एक दिन, जब रात्रि को कीर्तन समाप्त हुआ और सभी भक्त विश्राम में चले गए, वो भक्त—जिसने राधा-कृष्ण को अपने माता-पिता के रूप में स्वीकारा था— अपने कक्ष में अन्तिम बार प्रभु की मूर्ति के समक्ष बैठा… माथे पर तिलक, अधरों पर स्मित, ह्रदय में संपूर्ण समर्पण।
और उसी क्षण… प्रभु स्वयं उसे लेने आए। वो आत्मा मिलन के लिए अमरत्व में प्रवेश कर गई।
प्रातःकाल – जब भोर ने भक्ति को जागृत किया
अगले दिन, जब कुछ सेवक कक्ष की सफ़ाई के लिए पहुँचे, दरवाज़ा हलके से खुला हुआ था, प्रभु की मूर्ति के सामने वो भक्त ध्यानमग्न मुद्रा में निश्चल बैठा था… पर अब उस शरीर में जीवन का संचार नहीं था।
पास ही एक पत्र रखा था… जिसे देखकर उन्होंने सभी को बुलाया।
उसका अंतिम सन्देश – प्रेम का वसीयतनामा
वो पत्र पढ़ते हुए सभी की आँखें छलक पड़ीं।
“मैं अब जा रहा हूँ… मेरे माता-पिता, श्री राधा और श्री कृष्ण,
स्वयं मुझे लेने आये हैं। यह तन अब सेवा में न रहेगा,
पर यह निवास – ‘श्रीराधाकृष्ण प्रेमधाम’ – अब भी रहेगा, उन भक्तों और अनाथों के लिए जिनका संसार में कोई नहीं। यहाँ उन्हें माँ का आँचल और पिता का आश्रय मिलेगा।”
विरह में भक्ति – अंतिम यात्रा
जब भक्तजन उसके कक्ष में पहुँचे, तो जैसे समय थम सा गया। वो कोई साधारण मृत्यु नहीं थी, वो योगमाया में प्रभु से मिलन की लीला थी।
किसी ने उसे पुत्र की तरह गोदी में उठाया, कोई उसे भाई कहकर गले लग गया, कोई उसे मित्र मानकर रो पड़ा… और सभी ने मिलकर उसकी अंतिम सेवा की — भक्ति, प्रेम, और आँसुओं के संग।
और तब से…
वह स्थान आज भी जीवित है, जैसे वो स्वयं अब भी वहाँ हो।
वहाँ हर शाम दीप जलता है, मानो वो अब भी प्रभु के स्वागत को तत्पर हो।
कई अनाथ बच्चे, वहाँ आकर माँ राधा का आँचल पाते हैं।
कई भक्तजन, वहाँ आकर कहते हैं — “यहाँ आने के बाद लगता है, जैसे कोई अपने सिर पर हाथ फेर गया हो…”
कहानी का अंतिम संदेश
“जो अपने जीवन को राधा-कृष्ण की सेवा और प्रेम में समर्पित करता है, उसका अंत नहीं होता — उसका अमरारंभ होता है।”
वो चला गया… पर वो अब हर उस ह्रदय में है जो प्रेम से सेवा करता है और सेवा से प्रभु को माँ-पिता मानता है।
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माँ राधा, पिताश्री कृष्ण – उस आत्मा की पुनर्जन्म गाथा – भाग 4