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माँ राधा, पिताश्री कृष्ण – उस आत्मा की पुनर्जन्म गाथा - भाग 3

सेवा, समर्पण और आत्म-लय का अंतिम चरण

 

पिछले भागों से…

उस दिव्य बालक की आत्मा, जिसने राधाकृष्ण को अपने माता-पिता माना था, पिछले जन्म की अधूरी पुकार को लेकर इस जन्म में पुनः जन्मी थी। अपने सांसारिक माता-पिता की सेवा को प्रभु की सेवा मानकर जिया, और जब वे चले गए, तो माँ राधा और पिताश्री कृष्ण को अपने जीवन के प्रत्येक क्षण में अनुभव करने लगा।

 

अब अगले चरण में प्रवेश…

साल बीतते गए। जीवन में शांति थी, पर एक गहराई से आता हुआ प्रश्न उसे घेरने लगा—

“अगर मेरे माता-पिता राधाकृष्ण हैं, तो मुझे उनके घर—वृन्दावन—में ही जीवन बिताना चाहिए। क्यों न मैं इस सांसारिक घर को त्यागकर उसी भूमि पर बसूं जहाँ मेरी माँ राधा हर वृक्ष में बसी हैं और मेरे पिताश्री कान्हा हर रज में रमे हैं?”

 

त्याग और समर्पण

उसने बिना किसी को बताए, धीरे-धीरे अपना सब कुछ दान कर दिया—

घर,

जमा पूंजी,

वस्त्र,

और अपना अहंकार भी।

केवल प्रभु का नाम और स्मरण साथ रखा।

फिर एक दिन, उसने वृन्दावन में एक छोटा सा निवास लिया— एकदम सादा, मिट्टी की खुशबू से भरा, जहाँ खिड़की से देखकर तुलसी के पत्तों पर सुबह की किरणें दिखाई देतीं।

 

सेवा का केंद्र

अब उसका जीवन दो बातों में सिमट गया था:

श्री राधाकृष्ण की सेवा – जैसे एक पुत्र माँ-पिता के चरणों में बैठता है।

भक्तों की सेवा – जैसे कोई अपने भाई-बहनों की देखभाल करता है।

वो भूखे साधुओं को भोजन कराता, किसी थके पथिक को जल पिलाता, और जो रोता, उसे बस इतना कहता:

“तुम्हारे माँ-पिता यहीं हैं — वृन्दावन की गलियों में चलते हैं। देखो ज़रा ध्यान से, रज में उनका चरणचिह्न छिपा है…”

 

अंतिम इच्छा – वहीं प्राण त्यागना

अब उसकी एक ही इच्छा थी— “मैं यहीं वृन्दावन में अपने माँ-पिता की गोद में प्राण छोड़ दूँ।”

हर रात सोने से पहले वो दीप जलाता और कहता:

हे माँ राधा, हे पिताश्री कृष्ण, जैसे आपने मुझे एक बार फिर जीवन दिया, वैसे ही अब मुझे अपनी गोद में समा लेने की कृपा करें।

 

एक रात – मिलन का क्षण

एक चाँदनी रात थी। तुलसी के पत्ते हवा में झूम रहे थे। वो अपने छोटे से मंदिर में बैठा, जैसे रोज़ की तरह, माँ राधा और पिताश्री कृष्ण को निहार रहा था।

पर इस बार, मूर्ति नहीं हिली — माँ राधा स्वयं उतर आईं। कृष्ण मुस्कुराए — और कहा:

पुत्र, तू हमें पाने योग्य हो चुका है। अब चल, जहाँ माँ के आँचल की छाया और पिता की बाँसुरी की ध्वनि अनंत हो…

 

उस रात, वो चला गया…

भोर में जब भक्त आए, तो देखा — वो अब शरीर में नहीं था। पर चेहरे पर ऐसी मुस्कान थी, जैसे कोई अपने माता-पिता की गोद में सो गया हो।

 

समाप्त नहीं… आरंभ

आज भी वृन्दावन के कुछ वृद्ध साधु कहते हैं:

कभी कभी रात को एक बालक तुलसी के नीचे बैठा दिखता है — माँ राधा की गोद में, पिताश्री की छाया में… और मुस्कुराता है।

 

इस कथा का सार:

सच्ची भक्ति समय नहीं पूछती — वो तो पुनर्जन्म भी पार कर लेती है।

जो प्रभु को माता-पिता मान ले, वो कभी अनाथ नहीं रहता।

और जो वृन्दावन में राधाकृष्ण की सेवा में जीवन बिताता है, वो मृत्यु नहीं, मिलन प्राप्त करता है।

 

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माँ राधा, पिताश्री कृष्ण – उस आत्मा की पुनर्जन्म गाथा – भाग 4 

माँ राधा, पिताश्री कृष्ण – उस बालक की पुनर्जन्म गाथा – भाग 2 

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