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माँ राधा, पिताश्री कृष्ण – उस बालक की पुनर्जन्म गाथा - भाग 2

एक अनाथ बच्चे का दिव्य संबंध, जो साक्षात् राधाकृष्ण को माँ-पिता के रूप में जानता है

 

पिछले भाग से आगे…

जिस बालक ने पिछले जन्म में राधाकृष्ण को माता-पिता के रूप में पाने की अधूरी इच्छा लेकर देह त्याग दिया था,

उसे इस जन्म में एक बड़े, धार्मिक और समृद्ध परिवार में जन्म मिला।

वो बचपन से ही राधाकृष्ण को “माँ” और “पिता” कहकर पुकारता रहा। धीरे धीरे उसकी भक्ति गहरी होती गई।

परिवार को यह प्रेम एक मासूम कल्पना लगा, पर वह जानता था की ये कल्पना नहीं, उसका सत्य था।

 

सेवा – माँ-पिता की परछाई में श्रीहरि

जैसे-जैसे वह बड़ा हुआ, उसने अपने जन्म देने वाले माता-पिता की सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ी।

वह उनकी  सेवा करते-करते राधारानी और श्रीकृष्ण का रूप ही मानने लगा।

वो रोज़ उनके चरण दबाता और मन ही मन कहता,

 

माँ, आज आपके चरण राधारानी के जैसे लगते हैं… पिताजी, आपकी मुस्कान आज गोविंद जैसी है।

और उस निःस्वार्थ सेवा में उसे वही आनंद मिलने लगा, जो किसी को ठाकुरजी के मंदिर में मिल सकता था।

 

वियोग – पर परीक्षा की घड़ी

लेकिन एक दिन, काल ने करवट ली। माता-पिता बीमार पड़ने लगे।

लड़के ने जी-जान से सेवा की… लेकिन विधि को जो स्वीकार था, वही हुआ।

कुछ महीनों बाद, माता-पिता इस संसार से विदा हो गए।

 

विषाद – “अब मेरा कोई नहीं”

शव यात्रा के दिन, वह मौन रहा। न रोया, न चीखा। बस ठाकुरजी की मूर्ति के सामने जाकर बैठ गया और कहा:

आपने वादा किया था कि आप मेरे माता-पिता बनोगे। अब सब चले गए… क्या मैं सच में फिर अनाथ रह गया?

तभी उसकी आँखें भीग गईं, पर मन में एक प्रकाश उतर आया।

अंदर से एक आवाज़ आई “क्या माँ राधा और पिताश्री कृष्ण मरे जा सकते हैं?”

 

अदृश्य साथ – केवल हृदय को दिखे

उस दिन के बाद से, उस लड़के को अपने घर में राधा-कृष्ण की अनुभूति होती रही कभी उनकी झलक, कभी उनका स्पर्श।

जब कभी चोट लगती, कोई अदृश्य हाथ मरहम लगाता। जब अकेलापन सताता, कानों में मीठा स्वर आता: “हम यहीं हैं पुत्र…”

और जब वो रोता, कोई उसकी आँखों से आँसू पोंछ देता।

 

पर ये चमत्कार किसी और को नहीं दिखता था…

लोग सोचते वो भ्रमित है, शायद माता-पिता के जाने का सदमा है।

पर वो जानता था अब वो बालक नहीं, वो वही आत्मा है जिसने पुनः माँ-पिता को बुलाया है इस बार अमूर्त रूप में।

 

अंतिम भाव

अब वह बालक बड़ा हो चुका है। लोग उसे “एकांत का दिव्य भक्त” कहते हैं।

वो बहुत कम बोलता है पर रोज़ अपने मंदिर में घंटों श्रीराधाकृष्ण से बात करता है।

उसे कोई उत्तर नहीं सुनाई देता लेकिन उसकी आँखों से जो शांति बहती है, वो कहती है 

“उसे सब उत्तर मिल चुके हैं।”

जहाँ माँ राधा की करुणा और पिताश्री कृष्ण का सहारा हो, वहाँ जन्म या मृत्यु का कोई अर्थ नहीं रह जाता

सिर्फ़ सेवा, प्रेम और साक्षात्कार होता है।

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माँ राधा, पिताश्री कृष्ण – उस आत्मा की पुनर्जन्म गाथा – भाग 3 

माँ राधा, पिताश्री कृष्ण – उस बालक की पुनर्जन्म गाथा – भाग 1

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