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भगवद गीता 1.12 – जब भीष्म ने शंखनाद किया और युद्ध की ज्वाला भड़क उठी

 

श्लोक: 1.12 
तस्य संजनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः।
सिंहनादं विनद्योच्चैः शङ्खं दध्मौ प्रतापवान्॥

शब्दार्थ:
तस्य — उसका (दुर्योधन का)
सञ्जनयन् हर्षम् — उत्साह उत्पन्न करते हुए
कुरु वृद्धः — कुरु वंश के वृद्ध (भीष्म पितामह)
पितामहः — पितामह
सिंहनादं — सिंह के समान गर्जना
विनद्य — गर्जना करते हुए
उच्चैः — ऊँचे स्वर में
शङ्खं दध्मौ — शंख बजाया
प्रतापवान् — पराक्रमी
भावार्थ:
भीष्म पितामह, जो कुरुवंश के वृद्ध और अत्यंत पराक्रमी योद्धा थे, उन्होंने दुर्योधन में उत्साह और आत्मविश्वास उत्पन्न करने के लिए सिंह के समान गर्जना करते हुए ऊँचे स्वर में अपना शंख बजाया।

गूढ़ अर्थ (Deeper Insight):
भीष्म का यह शंखनाद केवल एक युद्ध संकेत नहीं था — यह एक मौन स्वीकृति थी उस युद्ध का, जिसे वह हृदय से नहीं चाहते थे।
वे धर्म के पक्षधर थे, लेकिन वचनबद्धता उन्हें अधर्म की सेना में खड़ा कर चुकी थी।
यह शंखनाद उस आंतरिक द्वंद्व का उद्घोष है — जब धर्मात्मा व्यक्ति को अपनी निष्ठा और कर्तव्य के बीच संतुलन बनाना पड़ता है।

यह शंख एक प्रश्न भी है:
क्या एक धर्मात्मा व्यक्ति को केवल सामाजिक कर्तव्यों के लिए अधर्म का साथ देना चाहिए?

Spiritual Insight (आध्यात्मिक दृष्टिकोण):
भीष्म का यह शंखनाद हमें सिखाता है:
जीवन में कई बार हम ऐसे निर्णय लेते हैं जो धर्म की भावना से नहीं, बल्कि दायित्व के दबाव में लिए जाते हैं।
जब भी धर्म और कर्तव्य टकराते हैं, तो अंतर्द्वंद्व का युद्ध शुरू हो जाता है।

धर्म केवल बाहरी आचरण नहीं, बल्कि आंतरिक सच्चाई का पालन है।

सीख (Takeaway):
पराक्रम केवल अस्त्र-शस्त्र में नहीं, बल्कि सत्य का समर्थन करने के साहस में है।
भीष्म जैसे महापुरुष भी यदि धर्म की स्थिति में भ्रमित हो सकते हैं, तो हमें जागरूक और सतर्क रहना चाहिए।
वचन और कर्तव्य महत्वपूर्ण हैं, परंतु यदि वे धर्म के विपरीत हों, तो पुनर्विचार आवश्यक है।

जीवन में प्रयोग:
जब आपके निर्णय केवल किसी को खुश करने, वचन निभाने, या पारिवारिक दबाव में हों तो रुकिए और सोचिए:
“क्या यह निर्णय मेरे आत्मा की आवाज़ से मेल खाता है?”
“इस श्लोक से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में जब भी कोई बड़ी चुनौती सामने हो, तो आत्मविश्वास और साहस का संचार आवश्यक है। जैसे भीष्म ने दुर्योधन को हर्षित करने के लिए शंखनाद किया, वैसे ही हमें भी जीवन में कठिन परिस्थितियों में आत्मविश्वास बनाए रखना चाहिए।” 

अगले श्लोक में जानेंगे:
किस प्रकार बाकी योद्धा अपने-अपने शंख बजा कर इस महायुद्ध के आरंभ का उद्घोष करते हैं — और युद्ध का वातावरण और भी भयावह हो उठता है।

पढ़ते रहिए – Bhaktipath.blog जय श्रीकृष्ण!

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