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भगवद गीता – अध्याय 1, श्लोक 27, स्वजनों को देखकर अर्जुन का हृदय व्याकुल


श्लोक:

तान् समीक्श्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान् | 

कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत् ॥ 27॥


शब्दार्थ (Shabdarth):

तान् समीक्ष्य – उन्हें देखकर

स कौन्तेयः – वह कुन्तीपुत्र (अर्जुन)

सर्वान् बन्धून् – सभी संबंधियों को

अवस्थितान् – युद्ध के लिए तैयार खड़ा पाया

कृपया परया आविष्टः – अत्यंत करुणा से व्याप्त हो गया

विषीदन् – शोकाकुल होकर

इदम् अब्रवीत् – यह कहा


हिंदी अनुवाद (Anuvaad):

अर्जुन ने जब अपने समस्त संबंधियों को युद्धभूमि में खड़ा देखा, 

तो वह अत्यंत करुणा से भर गया, और शोक में डूबकर उसने यह कहा।


भावार्थ (Simple Meaning):

इस श्लोक में अर्जुन की भावनाएँ अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाती हैं। 

युद्ध में अपने ही बंधुओं को देखकर वह अंदर से टूट जाता है और करुणा से भरकर उसका मन द्वंद्व में फँस जाता है।


गूढ़ अर्थ (Spiritual Insight):

अर्जुन का यह मानसिक संघर्ष केवल युद्ध से नहीं, बल्कि स्वजनों से जुड़ी भावनाओं से है।

यह श्लोक हमारे अंदर के उस क्षण का प्रतीक है जब हमें कर्तव्य और करुणा में से किसी एक को चुनना होता है।

“कृपा” — जो दिख रही है — वह वास्तव में मोह है,

और गीता हमें यही सिखाने आती है कि सच्चा धर्म मोह से परे होता है।


आध्यात्मिक सीख (Spiritual Learning):

हमें समझना होगा कि हर भावनात्मक करुणा धर्म नहीं होती।

जब हम अपने कर्तव्य को छोड़ देते हैं, केवल इसलिए कि हमें लोग अपने लगते हैं 

तब हम ना तो समाज का भला कर पाते हैं, ना आत्मा का।


जीवन में प्रयोग (Practical Application):

कभी-कभी सही निर्णय लेने के लिए हमें मोह से ऊपर उठना होता है।

अर्जुन की तरह, हमें भी भीतर के द्वंद्व से पार पाकर धर्म के मार्ग पर चलना सीखना चाहिए।


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