भगवद गीता – अध्याय 1, श्लोक 23, परखना है कौन खड़ा है अधर्म के साथ
श्लोक :
योत्स्यमानानविक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः।
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेः युध्दे प्रियचिकीर्षवः॥ 23॥
शब्दार्थ (Shabdarth):
योत्स्यमानान अविक्षे अहम्: – मैं देखना चाहता हूँ इन युद्ध करने वालों को
य एते अत्र समागताः – जो यहाँ एकत्र हुए हैं
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेः – दुरबुद्धि धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन के
युद्धे प्रियचिकीर्षवः – जो युद्ध में उसे प्रिय करने की इच्छा रखते हैं
अनुवाद (Anuvaad):
मैं यह देखना चाहता हूँ कि वे कौन हैं,
जो इस युद्ध में दुर्योधन की प्रसन्नता के लिए उसके पक्ष में खड़े हुए हैं।
भावार्थ (Simple Meaning):
अर्जुन युद्धभूमि में यह जानना चाहते हैं कि कौन-कौन से योद्धा दुर्योधन के अधर्मी पक्ष का समर्थन कर रहे हैं। वे केवल लड़ने नहीं आए हैं,
बल्कि धर्म और अधर्म की पहचान स्पष्ट करने आए हैं।
गूढ़ अर्थ (Spiritual Insight):
यह श्लोक अर्जुन के विवेक और चेतना को दर्शाता है। वो केवल बाहरी युद्ध नहीं लड़ना चाहते वो ये भी जानना चाहते हैं कि कौन सत्य के विरुद्ध खड़ा है।
धर्म के नाम पर जो अधर्म हो रहा है, उसका पर्दाफाश उनके लिए जरूरी है।
Spiritual Learning (आध्यात्मिक सीख):
हमारे जीवन में भी ऐसे कई अवसर आते हैं जहाँ हमें निर्णय लेना होता है “किसका साथ दूं?” क्या हम उन लोगों के साथ हैं जो स्वार्थ और अधर्म में लिप्त हैं,
या फिर सत्य और धर्म के साथ?
यह श्लोक हमें सिखाता है कि किसी भी कार्य से पहले विवेकपूर्ण दृष्टि से यह पहचानना आवश्यक है कि हमारा समर्थन किस ओर जा रहा है।
जीवन में प्रयोग (Practical Application):
जब हम जीवन में कोई पक्ष चुनते हैं जैसे नौकरी, मित्रता, या विचारधारा तो यह ज़रूरी है कि हम यह जानें कि हमारा साथ किसे मिल रहा है और वो किस नीयत से कार्य कर रहा है।
“विचार करो, फिर समर्थन दो।”
इसे भी पढ़े – भगवद गीता: अध्याय 1, श्लोक 22 – शत्रु कौन है? अर्जुन की युद्धपूर्व दृष्टि
अगर आपकी रुचि कविता पढ़ने में है तो आप इसे भी पढ़ें – Click Now