अध्याय 1, श्लोक 18, वीरों की गूंजती घोषणा
Bhagavad Gita
श्लोक 18
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः
पृथिवीपते। सौभद्रश्च महारथाः॥
अनुवाद:
हे पृथ्वी के स्वामी (राजन्)! राजा द्रुपद, द्रौपदी के पुत्र और अभिमन्यु (सौभद्र) ने भी, अपने-अपने बलवान भुजाओं से अलग-अलग शंख बजाए।
शब्दार्थ:
द्रुपदः – राजा द्रुपद
द्रौपदेयाः – द्रौपदी के पुत्र
सर्वशः – सभी
पृथिवीपते: – हे पृथ्वी के स्वामी (धृतराष्ट्र)
सौभद्रः – सुभद्रा का पुत्र (अभिमन्यु)
महारथः – महान योद्धा
भावार्थ:
हे पृथ्वीपति (धृतराष्ट्र), द्रुपद, द्रौपदी के पाँचों पुत्र और अभिमन्यु (सुभद्रा और अर्जुन का पुत्र) – ये सभी महारथी हैं, युद्ध की सभी विधाओं में पारंगत और अत्यंत वीर हैं।
गूढ़ अर्थ / आध्यात्मिक दृष्टिकोण:
इस श्लोक में अर्जुन के पक्ष (पांडवों) की ओर से लड़ने वाले विशिष्ट योद्धाओं का उल्लेख है। यह संकेत करता है कि धर्म के पक्ष में न केवल संख्या, बल्कि निष्ठा, पवित्रता और शुद्ध उद्देश्य से युक्त योद्धा होते हैं।
अभिमन्यु जैसे नवयुवक तक भी धर्म के लिए प्राणों की आहुति देने को तत्पर हैं। यह दर्शाता है कि जब मनुष्य को अपने जीवन के उद्देश्य में दिव्यता की अनुभूति होती है, तब वह अपने को छोटे नहीं आंकता – वह एक महारथी बन जाता है।
Spiritual Insight:
हर युग में ऐसे युवा और धर्मनिष्ठ आत्माएं होती हैं, जो धर्म की रक्षा के लिए स्वयं को समर्पित करती हैं।
अभिमन्यु एक प्रतीक है – त्याग, वीरता और युवा चेतना का जो धर्म के लिए जागृत होती है।
जीवन में प्रयोग:
हम सब के जीवन में कभी न कभी ऐसा समय आता है जब हमें अपने सिद्धांतों के लिए खड़ा होना होता है। चाहे हालात विपरीत क्यों न हों, यदि उद्देश्य शुद्ध है, तो परमात्मा स्वयं हमारे साथ होता है।
छोटा बड़ा नहीं होता, जो धर्म पर अडिग है – वही महारथी है।
इसे भी पढ़े – अध्याय 1, श्लोक 17 अर्जुन का शंखनाद