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भगवद गीता: अध्याय 1, श्लोक 20 – "धर्म की घोषणा: अर्जुन का संकल्प"

श्लोक :

अथ व्यवस्थितान् दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान् कपिध्वजः |

प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः ||

हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते: |||

 

शब्दार्थ (Word Meaning):

अथ – इसके बाद

व्यवस्थितान् – व्यूह में सुसज्जित

दृष्ट्वा – देखकर

धार्तराष्ट्रान् – धृतराष्ट्र के पुत्रों को

कपिध्वजः – जिनके रथध्वज पर कपि (हनुमान जी) है, अर्थात अर्जुन

प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते – जब युद्ध आरंभ हुआ

धनुः उद्यम्य – धनुष उठाकर

पाण्डवः – पांडव अर्जुन

हृषीकेशम् – भगवान श्रीकृष्ण से

वाक्यम् – वचन

इदम् आह – यह कहा

महीपते – हे राजन् (राजा धृतराष्ट्र)

 

अनुवाद (Translation in Hindi):

“हे राजन्! जब अर्जुन ने धृतराष्ट्र के पुत्रों को युद्ध के लिए तैयार देखा और युद्ध प्रारंभ होने ही वाला था, तब अपने रथ पर बैठे हुए, जिनके ध्वज पर हनुमान जी विराजमान थे, उन्होंने धनुष उठाया और श्रीकृष्ण से यह वचन कहा।”

 

भावार्थ (Meaning):

यह श्लोक युद्धभूमि की गंभीरता और अर्जुन के जाग्रत भाव को प्रकट करता है। जैसे ही अर्जुन ने देखा कि कौरव पक्ष युद्ध के लिए तैयार खड़ा है, उन्होंने भी अपने भीतर की चेतना को जगाकर श्रीकृष्ण से संवाद प्रारंभ किया।

 

गूढ़ अर्थ (Deeper Spiritual Insight):

कपिध्वज – अर्जुन के रथ पर हनुमान जी का ध्वज इस बात का संकेत है कि अर्जुन के साथ केवल श्रीकृष्ण ही नहीं, रामभक्त बलि हनुमान भी हैं – यानी संपूर्ण भक्तिभाव और आत्मसमर्पण।

धनुष उठाना – यह केवल एक भौतिक क्रिया नहीं, बल्कि कर्म का आरंभ है। जीवन में जब हम निर्णय लेने के बाद आगे बढ़ते हैं, तब हम भी अपना “धनुष उठाते हैं।”

हृषीकेश को संबोधन – अर्जुन जानता है कि युद्ध बाहर का नहीं, भीतर का है, इसलिए वह अपने मन और इंद्रियों के स्वामी श्रीकृष्ण की ओर मुड़ता है।

 

जीवन में प्रयोग (Practical Life Insight):

जब भी आप जीवन के किसी निर्णय के द्वार पर खड़े हों और भ्रम में हों, तब अपने रथ के सारथी, यानी अपने अंतरात्मा के श्रीकृष्ण से संवाद करें। वही आपको सही मार्ग दिखाएंगे।

 

सीख (Takeaway Message):

जब युद्ध सामने हो और मन डगमगाए – तो “धनुष उठाओ”, श्रीकृष्ण को पुकारो और धर्म के साथ खड़े हो जाओ।

 

अगले श्लोक में: अर्जुन क्या कहते हैं श्रीकृष्ण से, और कैसे प्रारंभ होती है गीता का उपदेश।

पढ़ते रहिए  Bhaktipath.blog | जय श्रीकृष्ण!

 

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