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भगवद गीता – अध्याय 1, श्लोक 29, अर्जुन का भय – युद्ध से पहले मन का टूटना

 

श्लोक:

वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते | 

गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते ॥ 29॥

 

शब्दार्थ (Shabdarth):

वेपथु: च – कंपकंपी भी

शरीरे मे – मेरे शरीर में

रोम हर्ष: च जायते – रोमांच उत्पन्न हो रहा है

गाण्डीवम् – मेरा धनुष

स्रंसते – गिर रहा है

हस्तात् – मेरे हाथ से

त्वक् च एव – त्वचा भी

परिदह्यते – जल रही है

 

हिंदी अनुवाद (Anuvaad):

मेरे शरीर में कंपन हो रहा है, रोमांच उत्पन्न हो रहा है, 

मेरा गाण्डीव धनुष हाथ से गिर रहा है, और मेरी त्वचा भी जल रही है।

 

भावार्थ (Simple Meaning):

अर्जुन अब केवल भावनात्मक रूप से ही नहीं, बल्कि शारीरिक रूप से भी विचलित हो चुका है। 

उसका आत्मबल डगमगा रहा है। धनुष हाथ से गिरना उसके धर्म संकल्प के गिरने का संकेत है।

 

गूढ़ अर्थ (Deeper Insight):

यह श्लोक दर्शाता है कि जब मन भय से भर जाता है, तो शरीर उसका सीधा प्रभाव झेलता है। 

अर्जुन की ये अवस्था बताती है कि वह कर्म के मार्ग पर चलने की तत्परता खोने लगा है।

गाण्डीव का गिरना सिर्फ हथियार छोड़ना नहीं है, बल्कि अपने कर्तव्य और धर्म को छोड़ने की मनोदशा है।

 

आध्यात्मिक शिक्षा (Spiritual Lesson):

जब भय और मोह जीवन में हावी हो जाते हैं, तो धर्म से विचलन शुरू हो जाता है।

अर्जुन की तरह हम भी कई बार अपनी जिम्मेदारियों से पीछे हटने का बहाना ढूंढ़ते हैं।

लेकिन यही वह क्षण होता है जब हमें आत्मिक विवेक और श्रीकृष्ण जैसे मार्गदर्शक की आवश्यकता होती है।

 

जीवन में प्रयोग (Practical Application):

जब जीवन में किसी निर्णय से भय, तनाव या शारीरिक प्रतिक्रिया हो रही हो,

तब समझिए कि आप किसी गंभीर आत्मिक द्वंद्व से गुजर रहे हैं।

उस समय कर्म, भक्ति और भगवद्गीता के ज्ञान का स्मरण ही हमें संतुलन में लाता है।

 

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